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________________ भावार्थ +3 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अकऋषिजी भते ! केक्इ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सत्तवाससहस्सट्ठिईएस उववज्जेज्जा, एवं पुढंवीकाइय उद्देसगसरिसो भाणियव्वो णवरं ट्ठिई संवेहंच जागेज्जा; सेसं तंचेव ॥ सेवं भंते ! भंतेति ॥ चउवीसइम सयरस तेरसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ १३ ॥ • ० ते उकाइयाणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति, णवरं पुढवीकाइय उद्देसग सरिसो उद्देसो भाणियन्त्र, वरं हि संवेहं च जाणेज्जा ॥ देवा णय उववजंति सेसं तंचेव सेवं भंते ! } उत्पन्न होवे ? ऐसे जैसे पृथ्वी काया का उद्देशा कहा वैसे कहना यावत् अहो भगवन् ! जो पृथ्वीकाया अपकाया में उत्पन्न होने याग्य होवे वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट सात हजार वर्ष ऐसे ही पृथ्वीकायाका उद्देशा विशेषता रहित जानना. परंतु स्थिति और संबंध ( अप्काया काही जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह चौवीसवा शतक का तेरहवा उद्देशा { संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ १३ ॥ C ० अहो भगवन् ! तेङकाया में कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! पृथ्वीकाया का उद्देशा सदृश यह ( उद्देशा भी कहना. परंतु स्थिति और संबंध पृथ्वीकाया का जानना. इस में देव नहीं उत्पन्न होते हैं. ० * प्रकाशक-राजहांदुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * २६२८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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