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मत्र
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी माने श्रा अमोलक ऋषिजी के
किं पिसाय वाणमंतर जाव गंधव्यवाणमंतर ? गोयमा ! पिसाय वाणमंतर जाय गंधव्य वाणमंतर ॥ ३५ ॥ वाणमंतर देवेणं भंते ! जे भविए पुढवीकाइए एएसिपि असुरकुमारगमग सरिसा गवगमगा भाणियव्वा, णवरं टिई कालादेसेणं च जाणेजा। ढिई जहण्णेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं सेसं तहेव ॥ ३६ ॥ जइ जोइसिय देवहितो उबवजंति किं चंदविमाणजोइसियदेवहितो उववजंति जाव ताराविमाण जोइसियदेवेहितो. उववज्जति ? . गोयमा! चंदविमाणजोइसियदेवहितावि
उववजति जाव तारा जाव उश्वजंति ॥ ३७ ॥ जोइसिय देवेणं भंते ! जे भविए वाणव्यंतर में से उत्पन्न होवे तो क्या पिशाच में से उत्पन्न होवे यावत् गंधर्व में से उत्पन्न हो ? अहो गौतम ! पिशाच यावत् गंधर्व में में उत्पन्न होवे ॥३५॥ अहो भगवन् ! वाणव्यंतर पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने योग्य होवे वगैरह उन के नव गमा असुरकुमार के नय गमा जैसे कहना. परंतु स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट एक पल्योपम. वैसे ही कालादेश का भी जानना ॥ ३६॥ यदि ज्योतिषी में से उत्पन्न होये तो क्या चंद्र यावत् तारा में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! चंद्र विमान ज्योतिषी यावत् ताग विमान में उत्पन्न होबे ॥ ३७ ॥ ज्योतिषी देव पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने योग्य होवे वगैरह असुरकुमार
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ