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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी "
यन्वा, णवरं एएसु चेव ठाणेसु णाणत्ता भाणियव्वाः सरीरोगाहणा जहणेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं, ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा, एवं अणुबंधोवि ॥ चत्तारि इंदिया सेसं तंचेब जाव णवगमए ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं वावीसं वाससहस्साई छहिं मासेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीतिं वाससहस्साई चउवीसाए मासेहिं अब्भहियाए, एवइयं जाव करेजा ॥२३॥ जइ पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएहितो उवबज्जति किं सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए हिंतो उववज्जति, असणिपींचीदयतिरिक्खजेणिए ? गोयमा ! सण्णि पंचिंदिय, चतुरेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे तो वगैरह सब बेइन्द्रिय जैसे नव गमा कहना. परंतु शरीर अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट चार गाउ. स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट छ मास ऐसे ही अनुबंध.. इन्द्रियों चार शेष सब वैसे ही कहना. कालादेश से जघन्य बावीस हजार वर्ष और छ मास अधिक उत्कृष्ट अठासी हजार वर्ष और चौवीस मास अधिक. ऐसे ही यावत् करे ॥२३॥ यदि पंचेन्द्रिय तिर्यंच में से उत्पन्न होवे तो क्या संधी पंचन्द्रियमें से उत्पन्न होवे या असंज्ञी पंचेन्द्रियमें से? अहो गौतम ! संझी पंचेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय उत्पन्न होवे. यदि संज्ञी पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे तो क्या जलचर में से उत्पन्न होवे
. प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाहाप्रसादजी*
भावार्थ