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सूत्र
भावार्थ
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 45
जहणेणं वावीसं वाससहरसाई, उक्कोसेणवि वावीसं वाससहस्साइं ॥ ७ ॥ ९ ॥ सोचैव जहण्णकाल ठिईएस उबवण्णो जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणत्रि अंतोमुहुतं एवं जहा सत्तमगमगो जाव भवादेसो || कालादेसेणं जहण्णेणं वात्रीसं बाससहरसाईं अंतोमुहुत्त अन्भहियाई उक्कोसेणं अट्ठासीइं वाससहस्साइं चउहिं अंतोमुहुत्तेर्हि अमहियाई एवइयं कालं ॥ ८ ॥ १० ॥ सोचेव उक्कोस काल ठितीएस उववण्णो जहणेणं बावीसं वास सहस्स ठितीएस उक्कोसेणवि बाबीसं वास सहस्तठितीएस एवंचेव सत्तमगमग वत्तव्या जाणियव्वा जव भवादेसोत्ति
वाला उत्पन्न हुवा तीसरा गया कहना. वही जघन्य स्थितिवाली पृथ्वीकाया में
परंतु स्थिति जघन्य उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की कहना ॥ ९ ॥ उत्पन्न हुवा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त की स्थिति से उत्पन्न होवे. ऐसे ही भवादेश पर्यंत सातवा गमा कहना. कालादेश से जघन्य बावीस हजार वर्ष और अंतमुहूर्त अधिक उत्कृष्ट अठासी हजार वर्ष और चार अंतर्मुहूर्त अधिक इतना काल यावत् करे ॥ १० ॥ ३ वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की स्थिति से उत्पन्न होता है वगैरह सातवा गमाकी वक्तव्यता भवादेश पर्यंत कहना. कालादेश से जघन्य चमालीस हजार वर्ष दो भव पृथ्वीकाया के
43008 चौवीसत्रा शतक का चारहवा उद्देशा
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