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42 अनुवादक-बालंब्रह्मचारी मानि श्री अमालक ऋi
द्विती सेसं तंचेव ॥ ४ ॥ ६ ॥ सोचेव जहण्णकाल द्वितीएसु उववण्णो सन्वेव चउत्थगमक वत्तव्यया भाणियव्या ॥ ६ ॥ ७ ॥ सोचेव उक्कोसकालद्वितीएसु उव. वण्णो एसचेव वत्तव्वया, णवरं जहण्णेणं एक्कोवा, दोवा, तिण्णिवा, उक्कोसेणं संखेजावा, असंखेजावा जाव भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं वावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्त मब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीतिवास सहस्साई चउहिं अंतोमुत्तहिं अब्भहियाइं एवइयं कालं ॥ ६ ॥ ८ ॥ सोचव अप्पणा उक्कोस कालठि तीओ जाओ एवं तईयगमग सरिसो गिरवसेसो भाणियब्वो, णवरं अप्पणा से अप्रशस्त अध्यवसाय और अनुबंध जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त ॥ ६ ॥ वही जघन्य स्थितिवाली पृथ्वीकाया में उत्पन्न हुवा उपर्युक्त चौथा गमा विशेषता रहिन कहना ॥ ७॥ वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा वही वक्तव्यता कहना. परंतु जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट संख्यात असंख्यात उत्पन्न होनेकाकहना यावत् भवादेश से जघन्य दो भव ग्रहण उत्कृष्ट आठ भव कालादेश से जघन्य बावीस हजार वर्ष और अंतर्मुहून अधिक उत्कृष्ट अठासी हजार वर्ष और चार अंतर्मुहूर्त अधिक. इतना यावत् करे ॥ ८॥ वही उत्कृष्ट स्थिति
+प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ