________________
40
२५९७
- पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 40
वाससहस्सट्टिईएसु उववजजा तेणं भंते ! जीवा एग समएणं पुच्छा ? गोयमा ! अणुसमयं अविरहिया असंखेज्जा उववज्जति ॥ छेवटुसंघयणी॥मरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भागं उक्कोसेणवि अंगुलस्स असंखजइ भागं॥ मसूरचंद संट्ठिया॥ चत्तारि लेस्साओ॥णो सम्मट्टिी मिच्छादिट्टी,णो सम्मामिच्छादिट्ठी॥णोणाणी अण्णाणी.. दो अण्णाणी णियमं ॥ णोमणजोगी णोवइजोगी कायजोगी ॥ उवओगो दुविहोवि चत्तारि सण्णाओ चत्तारि कसायाओ एगे फासिदिए प० तिण्णि समुग्घाया ॥ वेदणा
दुविहा ॥ णो इत्थीवेदगा णो पुरिसवेदगा गपुंसगवेदगा ॥ ठिई जहण्णेणं होते. अहो भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होवे ? अहो. गौतम ! वे समय २ में विरह रहित असंख्यात उत्पन्न होवे. उस को संघयण छेवट जानना, शरीर की अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवा भाग. संस्थान मसुर की दाल अथवा अर्ध चंद्र का, लेश्या चार, समदृष्टि व सममिथ्यादृष्टि नहीं परंतु एक मिथ्यादृष्टि, ज्ञानी नहीं, अज्ञानी हैं, जिस में मति अज्ञान व श्रुत अज्ञान ऐसे दो अज्ञान की नियमा है. मन योग व वचन योग नहीं है परंतु काया योग है, दो उपयोग, चार संज्ञा चार, कषाय, एक स्पर्शेन्द्रिय, तीन समुद्धात, दोनों प्रकार की वेदना, स्त्री वेद पुरुष वेद नहीं परंतु नपुंसक वेद
चौवीसवा शतक का बारहवा उद्देशा 4889