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________________ २५८९ 48पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4882 त्ति ॥ चउवीसमसयस्स वितिओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ २ ॥ रायगिहे जाव एवं वयासी-णागकुमाराणं भंते ! कओहिंतो उववजंति किं गैरइए - हिंतो उववजंति, तिरिक्खमणुस्सदेवेहितो उववनंति ? गोयमा ! णो णेरइएहितो उववजंति, तिरिमणुस्सेहितो. उववज्जति, णो देवहितो उववज्जति, ॥ जइ तिरिक्ख जोणि एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तन्वया तहा एएसिपि जाव असण्णित्ति ॥ जइ सण्णि पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववर्जति किं संखेजगमाउय असंखेजवासाउय ? गोयमा! संखेजवासाउय, असंखेजवासाउय जाव उवबजंति ॥ असंखेजवासाउय सणि वचन सस हैं. यह चौवीसवा शतक का दूसरा उद्देशा संपूर्ण दुवा ॥ २४ ॥२॥ है दूसरे उद्देश में असुर कुमार का कथन कीया. तीप्तरे में नागकुमार का कथन करते हैं. राजगृह नगर में यावत् ऐसे बोले अहो भगवन् ! नागकुमार कहां से उत्पन्न होते हैं ? क्या नारकी, तिर्यंच, मनुष्य व देव में से उत्पन्न होते हैं? अहो गौतम ! नागकुमार तिर्यंच व मनुष्य में से उत्पन्न होते हैं परंत नारकी व देव में से नहीं उत्पन्न होते हैं वगैरह जैसी असुरकुमार की वक्तव्यता कही वही सब यहांपर - असंझी तक कहवा. और संज्ञीतियेच पंचेन्द्रिय उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष के आयुष्य वाले, <38* चौवसिवा शतक का तीसरा उद्देशा - भावार्थ --
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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