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4. अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
. कालादेसोत्ति ॥ ५ ॥ सोचेव उक्कोसकालढ़िईएसु उववण्णो सम्वेव लड़ी जाव अणुबंधोत्ति, भवादेसेणं जहण्णणं तिण्णि भवग्गहणाई उक्कोसेणं पंचभवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं अंतोमहुत्तेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं तीहिं अंतोमुहत्तेहिं अब्भाहयाई, एवइयं कालं जाव करेज्जा ॥ ६॥ सोचेव अप्पणा उक्कोसकालठिईओ जाओ जहण्णेणं वाबीसं सागरोवमठिईएसु उक्कोसणं तेत्तीसं सागरोवमठिईएसु उववज्जेज्जा ॥ तेणं भंते ! अवसेसा सत्तमपुढवी पढमगमगवत्तव्वया भाणियव्या जाव भवादेसोत्ति णवरं ठिई अणुबंधोत्त,
जहण्णेणं पुनकोडी उक्कोसेणंवि पुव्यकोडी सेसं तंचेव; कालादेसेणं जहण्णेणं बाबीसं जघन्य स्थितिवाली नारकी में उत्पन्न होवे तो कालादेश तक पूर्वोक्त चौथा गमा कहना. वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा सब लब्धि अनुबंध वगैरह पहिले जैसे कहना. भवादेश से जघन्य तीन भर उत्कृष्ट । पांच भव, कालादेश से जघन्य तेत्तीस सागरोपम दो अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट छासठ सागरोपम और तीन अंतर्मुहून अधिक. इतना काल करे. वही उत्कृष्ट स्थितिवाला वहां उत्पन्न हुवा जघन्य वाचीस सागरोपम उत्कृष्ट तेत्तीस मागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होवे. और सब सातवी नरक के पहिले गमा जैसे कहना
. प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ