SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सृत्र भावार्थ 488+ पंचमांगविवाह पष्णत्ति ( भगवती ) सूत्र समएणं केवइया उववज्जति जहेव असण्णी | तेसिणं भंते ! जीवाणं मरीरगा किं संघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छन्त्रिह संघयणी पण्णत्ता तंजहा वइरोसभ पाराय संघयणी उसभ नाराय जान छेत्रट्ठसंघयणी ॥ सरीरोगाहणा जहेब असण्णीणं ॥ तेसिणं भंते! जीवाणं सरीरगा किं संठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! छन्विह संठिया पण्णत्ता, तं जहा - समचउरंसाणग्गोहा जाव हुंडा || तेसिणं भंते! जीवाणं कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ तंजहा. कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा ॥ दिट्ठी तिविहावि ॥ तिष्णि णाणा तिष्णि अण्णाणा भयणा | जोगो तिविहोवि सेसं जहा { होवे. अहो भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे असंझी का कहा वैसे ही इन का भी कहना अर्थात् असंख्यात उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! उन जीवों के शरीर कौनसे संघयनवाले हैं ? अहो गौतम ! छ संघयनवाले वे जीवों हैं; जिन के नाम-वज्र ऋषभ नाराच संघयन यावत् छेवक संघयन. शरीर की अवगाहना जैमी असंज्ञी की कही वैसे ही कहना यावत् जघन्य अंगुल के { असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट एक हजार योजन की. अहो भगवन् ! उन को कौनसा संस्थान कहा ? अहो | गौतम ! छ संस्थान कहें समचतुस्र संस्थान यावत् हुडक संस्थान. अहो भगवन् ! उन जीवों को {लेश्याओं कितनी कहीं ? अहो गौतम ! उन को छ लेश्याओं कहीं जिन के नाम कृष्ण यावत् शुक्ल लेश्या. इन में तीन दृष्टि, तीन ज्ञान, तीन अज्ञान और नोग भी तीन पाते हैं. शेष अनुबंध पर्यंत सब सवा शतक का पहिला उद्देशा +42
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy