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सूत्र
भावार्थ
49+ पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 40
भागट्टिईएस उक्को विपलिओ मस्स असंखेजइभागट्टिईएस उववजेज्जा ॥ तेयं भंते! अवसेसं तंचेत्र ताणिचेव तिण्णि णाणत्ताइं जाब सेणं भंते । जहण्ण कालट्ठिईघस्स पज्जत जान तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालट्ठिईय रयणप्पभा जाव करेजा ? गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं पलिओत्रमस्स असंखेज्जइ भागं अंतोमुहुत्तमम्भहियं उकासेणंचि पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागं अंतोमुहुत्त मज्भहियं एवइयं कालं जाव करेजा || २७ ॥ उक्कोसकाल ट्ठिईय पजत असण्णि पंचिदियतिरिक्खजोणिएणं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढवीणेरइएस उववज्जित्तए, काल की स्थिति से होता है ? अहो गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवा भाग की स्थिति में उत्पन्न होने और शेष सब पूर्वोक्त जैसे कहना. तीन भिन्नता भी पूर्वोक्त जैसे कहना. जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त यावत् तिर्यच उत्कृष्ट कालीस्थीत वाली रत्नप्रभा यावत् करे ? अहो गौतम ! भवादेश से दो भव और कालादेश से जघन्य उत्कृष्ट पल्योपन का असंख्यातवा भाग और अंतर्मुहूर्त अधिक इतना काल यावत् सेवन करे || २७ || उत्कृष्ट स्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य होता है वह वहां कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो !
42 चौबीसवा शतक का पहिला उद्देशा
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