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________________ सूत्र मात्रार्थ 4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्सठिईएस उक्कोसेणवि दसवासस हस्ल ठिईएस उववज्जेज्जातेणं भंते! जीवा सेसं तंत्र || ताईचत्र तिष्णि णाणत्ताइं जाव सेणं भंते ! जहण कालाई जन्त जात्र जोणिए जहण्ण कालट्ठिईय रयणप्पभा पुणरविं जाब ? गोयमा ! भवादें दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणणेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं दसवासमहस्साइं अंतो मुहुत्तमम्भहियाई एवइयं कालं सेवेजा जाव करेजा ॥ २७ ॥ जहण्णकालीठईय पजत जाव तिरिक्खजोणियाणं भंते 1 जे भए उक्कमकालट्ठिएस रयणप्प मापुढवीणेरइए उत्रबजित्तए सेणं भंते! केवतिय कालट्ठिईएस उववजेजा ? गोयमा ! जहणेणं पलिओत्रमस्स असंखेज्जइ वैसे ही जानना. इन में उपर्युक्त तीन विशेषता है और शेष सत्र पूर्वोक्त जैसे कहना यावत् जघन्य काल स्थिति पर्याप्त यावत् जघन्य काल स्थिति में यावत् ? अहां गौतम ! भवादेश से दो भवग्रहण अधिक उत्कृष्ट दश हजार वर्ष और अंतर्मुहूर्त अधिक २० ॥ अहो भगवन् ! जघन्य स्थिति वाला तिर्यच और कालादेश से जघन्य दश हजार वर्ष अंत इतना काल करे और इतनी गवागत करे ॥ पंचेन्द्रिय उत्कृष्ट स्थिति वाली रत्नप्रभा पृथ्वी में नारकीपने उत्पन्न होने योग्य होता है वह कितना . * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी २६४४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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