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मोकलि अक्कयोंदीणं एएसिणं जे जीवा मूलत्साए वक्कमति एवं मूलादीया दस उद्देसगा कायबा जहा तालबग्गो, णवरं फल उद्देसे ओगाहणाजहण्णणं अंगुलस्स असंखजइ भागं, उक्कोसेणं धणु पुहत्तं, ठिई सम्बत्थ जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वास
पुहत्तं, ससं तंचेव । छटो बग्गो सम्मत्तं ॥ २२ ॥ ६ ॥ एवं छसुवि वग्गेसु __सहि उद्देसगा भवति ।। २२ ॥ ६० ॥ वावीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ २२ ॥ मोकली, अबोदी, इन में जो जीव मूलपने उत्पन्न होने यो मूलादि, दश उद्देशे ताल वृक्ष जैसे करना. विशेष में फल उद्देशे में अवगाहना जघन्य अंगूल के असंख्यातवा भाग् उत्कृष्ट प्रत्येक धनुष्य की कहना स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट प्रत्येक वर्ष की. यह छठा वर्ग समाप्त हुचा, योछ वर्ग के साठ उदरे हुवे ॥ २२॥ ६॥ यह बावीसवा शतक संपूर्ण हुवा ॥ २२ ॥
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भावाथा
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनिश्रामोलक ऋषिजी
.प्रकाशक राजावहदुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.