________________
मुनि श्री अम लक ऋषिनी
उसएस देवो ण उववज्जइ, तिण्णि लेस्साओ, ठिती जहण्णणं अंतोमुहत्तं उक्कोतर्फ दसवास सहस्साई उवरिलेसु पंचमु उद्देसएसु देवो उववजइ ॥ चत्तारि लेस्साओ; ठिई महणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसणं वास पुहुत्तं ॥ ओगाहणा मूले कंदे धणुह पुहुत्तं ॥ खंधे तयाय सालेय गाउयपुहुत्तं, पवाले पत्ते धणुह पुहुत्तं ॥ पुप्फे हत्थ पुदुत्तं ॥ फलेय वीएय अंगुलपुहुत्तं ॥ सव्वेसिं जहण्णेणं अंगुलस्स असं
भासा
प्रथम वर्ग में साली उद्देशा कहा वैसे ही यहां सब कथन जानना. इक्कीसवे शतक में प्रथम वर्ग के मूल आदि दश उद्देशे अलगर किये वैसे ही इस के भी दश उद्देशे कहना. इस में इतनी विशेषता कि मूल, कंद, स्कंध, त्वचा, और शाखा इन पांच उद्देशे में देवता की उत्पत्ति नहीं है इस से इन में लेश्या भी तीन कहना. इनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट दश हजार वर्ष और उपर के प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और वीज इन पांचमें देवता उत्पन्न होते हैं इसलिये चार लेश्या कहना. स्थिति जघन्य अंतर्मुहुर्त की की उत्कृष्ट प्रत्येक वर्ष की. अवगाहना मूल व स्कंद की प्रत्येक धनुष्य की, स्कंध, त्वचा व शाखा की प्रत्येक कोश की, प्रवाल व पत्र की प्रत्येक धनुष्य की, पुष्प की प्रत्येक हाथ की, फल व बीज की प्रत्येक अंगूल की. यह उत्कृष्ट अवगाहना जानना. सब की जघन्य अवगाहना अंगूल के असंख्यात वे भाग
* प्रकाशक राजाबहादुर साला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
40१ अनुवादक-बालत्रमा