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48 पंचांग विवाह पस्णचि (भगवती) मूत्र
णेरइया वारसएणं णो वारसएणं समजिया ॥ जेणं गेरइया णेगेहिं वारसएहिं पत्रेस णएणं परिसंति तेणं णेरड्या वारसएहि समजिया ॥ जेणं णेरड्या णेगेहि वारसएहिं अण्णेणय जहण्णेणं एक्केणवा देोहिंवा तिहिंवा उक्कोमेणं एकारसएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं णेरइया वारसहियणोबारसएणय समजिया ॥ सेतेण?णं जाव समजियावि ॥ एवं . जाव थणियकुमारा॥ पुढवीकाइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! पुढवीकाइया णो वारससमजिया णो नोवारसएणय समज्जिया, णो वारसएय णो वारसएणय समजिया, बारसएहिं
समजिया वारसएहिय णो बारसएणय समजिया ॥ से केणटेणं भंते ! जाव समबारह प्रवेशन से प्रवेश करते हैं बे बहुत बारह से समार्जित हैं और जो नारकी बहुत बारह और अन्य E जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट अग्यारह प्रवेशन से प्रवेश करते हैं वे बहुत बारह व नोबारह समार्जित हैं. .
इसलिये ऐमा कहा गया है यावत् समार्जित हैं. ऐसे ही स्तनित कुपारपर्यंत जानना. पृथ्वीकाया की पृच्छा ? अहो गौतम ! पृथ्वीकाया बारह समार्जित, नो बारह समार्जिन और बारह समार्जित नो बारह समाजित नहीं है परंतु बहुत बारह समार्जित व बहुत बारह समार्जित व नो बारह समार्जित है. अहो, भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है यावत् नो पारह समार्जित है ? अहो गौतम जो पृथ्वी कापा ।
वीसका शतक कादशचा उद्देशा
भावार्थ