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सूत्र
भावार्थ
६०३ अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी
इरिया असमितीतिया जाय उच्चारपासवण जाव परिद्वावणिया असमितीतिवा, मण अगुतीतिवा, वइअगुत्तीतिवा, काय अगुनीतिवा, जेयावण्णे तहप्पगारा सच्चे ते अहम्मत्किायरस अभिवयणा ॥ ५ ॥ आगासत्थि कायस्सणं पुच्छा, गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पं० तंजहा- आगासेइवा आगासत्धिका एतिवा, गगणेतिवा, नभेइवा. समेतिवा, चिसमेतित्रा; खहेतिया, विहतिवा वीत्तीतिवा, विवरेतिया, अंबरे तिवा, अंबरसेतिबा,छिडेतिवा, झूसिरेतिया मग्गतिवा, विमुहेतिया, अहेतिया, विरुद्वेतिवा, आधारेतिबा, वोमेतिवा, भायणेतिवा, अंतरिक्खेतिवा, सामेतिवा, उवासंततिवा, आगमे तिवा, फलिहेतिया अनंतंतिया, जेयावरण तहप्पगारा सव्वें ते आगासत्थिकायरस अभिभाषा असमिति, यावत् उच्चार प्रस्रवण खेल जल सिंधान परिस्थापनीय असमिति, मन अगुप्ति, बचन अगुप्ति काया अगुप्ति और ऐमे जो अन्य हैं वे मत्र अधर्मास्तिकाया हैं ॥ ५ ॥ आकाशास्तिकाया की पृच्छा, अहो गौतम ! आकाशास्तिकाया के अनेक नाम कहे हैं आकाश, आकाशास्तिकाया, गगन, नभ, सम, विषम वह, विद्या, वीचिर, विवर, अंबर, अम्बरस, छिद्र, झनिर, मार्ग, त्रिमुख, अट्ट, वियत् आधार, व्योम, भाजन, अंतरीक्ष, श्याम, उदानंतर, अगम, स्फटिक, अनंत और वैसे ही ऐसे जो अन्य
* प्रकाशक राजाबहदुर लाला सुखदेवसहायनी आलाममादजी
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