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भावार्थ
18+- पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 49+
पणाइवायवेरमणेतिवा, मुसावायवेरमणेतिया, एवं जाव परिग्गह वेरमणे, कोहविवेगेतिवा जाव मिच्छादंसण सलविवेगेतिवा, इरियासमिएतिवा भासासमिए तिवा सणासमितिवा • आदाण भंडमत्त निक्खेवणासमिएतित्रा, उच्चारपासवण खेल सिंघाणपरिद्वावणियासमिईतीतिवा, मणगुत्तीया, धइगुत्ती तिवा, कायगुत्ती तिवा; जेयात्रणे सहपगारा सभ्येते धम्मत्थिकायरस अभिवयणा ॥ ४ ॥ अहम्मत्थि कारणं भंते ! केवइया अभिवयणा प० गोयमा ! अणेगा अभिवयणा प० तंजा - अधम्मेतिवा अधम्मत्थिकाएतिवा, पाणातिवाय जाव मिच्छादंसण सल्लेतिवा,
( गौतम ! धर्मास्तिकाया के अनेक नाम कहे हैं. जैसे- धर्म, धर्मास्तिकाय, प्राणातिपात विरमण, मृषावाद { विरमण यावत् परिग्रह विरमण, क्रोध विवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विवेक, ईर्यासमिति, भाषा समिति एषणा समिति, आदान भंड पात्र निक्षेपन समिति, उच्चार प्रस्रवणखेल जल परिस्थापनीय समिति, मन गुप्ति, बचन गुप्ति, काया गुप्तेि और ऐसे जो कोई अन्य हैं वे सब धर्मास्तिकाया के नाम मे कहाये जाते हैं ॥ ४ ॥ { अहो मगवन् ! 'अधर्मास्तिकाया के कितने नाम कहे हैं ? अहो गौतम ! अधर्मास्तिकाया के अनेक नाम कहे हैं जिन के नाम अधर्म, अधर्मास्तिकाया, माणातिपान यावत् मिथ्या दर्शन शल्य, ईर्यो असमिति
488+- सिवा शतक का दूसरा उद्देशा 4
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