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+9 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
॥ १३॥ कइविहाणं भंते ! णाणणिवत्ती ५. ? गोयमा ! पंचत्रिहा णाणणिवत्ती प० तंजहा-अभिणिबोहिय णाणणिवत्ती जाव केवलणाणणिवत्ती, एवं एगिदिय वजं जाव वेमाणिया जस्स जइ णाणाइं ॥१४॥ कइविहाणं भंते ! अण्णाणणिवत्ती ५. ? गोयमा ! तिविहा अण्णाणणिवत्ती ५० तंजहा-मइअण्णाणणिव्वती सुअ अण्णाणणिवत्ती, विभंगणाणणिव्वशी, एवं अस्स अइ जाव वेमाणिया ॥ १५ ॥ कइविहाणं भंते ! जोगणिवत्ती प.? गोयमा ! तिविहा प• तंजहा-मणजोग णिवत्ती, बहजोगणिवत्ती, कायोग णिवत्ती॥ एवं जाय वेमाणियाणं जस्स भगवन् ! ज्ञान निवृत्ति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! ज्ञान निवृत्ति के पांच भेद कहे हैं. आभिनि बोधिक ज्ञान निवृति यावत् केवल ज्ञान निवृत्ति ऐसे ही एकेन्द्रिय छोडकर वैमानिक पर्यंत जिनको जितने ज्ञान | होवे उन को उतनी ज्ञान निवृत्ति कहना. ॥१४॥ अही भगवन् ! अज्ञान निशि के कितने भेद कहे हैं? अहो. गौतम ! अज्ञान निवृत्ति के तीन भेद कहे हैं. पति अज्ञान निवृति श्रुतमाम निर्वृत्ति व विभगबान निवृशि. ऐसे होवैमानिक पर्यंत जिन को जितने अज्ञान होवे उन को उतनी अज्ञान निवृत्ति कहना ॥१५॥ अहो भगवन्! योग निवृत्ति के कितने भेद कहे हैं? अहो गौतम! योग निवृत्ति के तीन भेद कहे हैं. १ मनयोग निवृत्ति, १२ वचन योग निर्वृति व ३ काया योग निवृत्ति. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत जिन को जितने योग होवे उन को
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी मालाप्रसादजी .
भावार्थ