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सत्र
भावार्थ
488+- पंचमांग विवाह पष्णात ( भगवती ) सूत्र
श्वेत्र, अप्पाकरियतरा चेव, अप्पासंवतरा चैत्र, अप्पवेयणतरा चेव, ? गोयमा ! चरमेहिंतो रइएहिंतो परमा जाव महावेयणतरा वेत्र, परमेहिंतो णेरइएहिंतो चरमा रइया जाव अप्पत्रेयणतरा वेव ॥ से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव अप्पवेयणतरा चैव ? गोयमा ! ठितिपडुच्च से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-जाव अप्पत्रेयणतरा वेव ॥ १ ॥ अस्थिणं भंते ! वरमावि असुरकुमारा परमावि असुरकुमारा ? एवं श्वेव वरं विवरीयं भाणियन्त्रं, परमा अप्पकम्मा, चरमा महाकम्मा, सेसं तंचेव जाव
नारकी महा कर्म अल्प कर्म यावत्
अथवा महा स्थितिवाले नारकी से अल्प स्थितिवाले भारकी क्या अल्प कर्म, अल्प क्रिया, अल्प आश्रव व अल्प वेदनावाले हैं ? अहो गौतम ! अल्प स्थितिवाले नारकी से महा स्थितिवाले यावत् महा वेदनावाले हैं और महा स्थितिवाले नारकी से अल्प स्थितिवाले नारकी अल्प वेदनावाले हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है यावत् अल्प वेदनावाले हैं ? अहो गौतम ! स्थिति आपेक्षाकर इसलिये ऐसा कहा गया है यावत् अल्प वेदनावाले हैं ॥१॥ अहो भगवन् ! क्या अल्प स्थितिवाले असुरकुमार भी है और बडी स्थितिवाले असुर कुमार भी हैं ? अहो गौतम! ऐसेही कहना. परंतु नारकी से यह विपरीत जानना. परम अल्प कर्मवाले और चरम महा कर्मचाले. ऐसे ही स्तनित
48*+ उच्चीसवा शतक का पांचवा उद्देशा 488+
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