________________
२३८५
भावार्थ
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती)
दसणसल्लेवि उवक्खाइजंति, जेसि पियणं जीवाणं ते जीवा एवं माहिति तेर्सि पियणं जीवाणं णो विण्णाएणाणत्ते ॥ ८ ॥ तेणं भंते ! जीवा कओहिंतो उववजति ? किं णेरइएहिंतो उववज्जंति एवं जहा वकंतीए पुढवी काइयाणं उववाओ तहा भाणियव्वो ॥ ९॥ तेसिं पियणं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसणं बावीसं वास सहस्साई
॥ १० ॥ तोसणं भंते ! जीवाणं कइ समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ का क्या पाप लगता है ? अहो गौतम ! वे प्राणातिपात करे, मृषावाद बोले, अदत्तादान ग्रहण करे यावत् मिथ्या दर्शन भी करे, जो जीवों पृथ्वी कायिक संबंधी घात करे वे जीवों भी वैसे ही कहाये जाते हैं. मात्र उन को ऐमा ज्ञान नहीं है कि इसने हम को मारा. यह हमारा घातक है|८|अब उत्पत्तिद्वार कहते हैं:-अहो भगवन् ! वे जीवों कहां से उत्पन्न होते हैं ? क्या नरक से मरकर उत्पन्न होते हैं. तिर्यंच से मनुष्य से या देव से ? अहो गौतम ! जैले पन्नवणा के छठे पद में पृथ्वी काया की उत्पत्ति की वक्तव्यता कही. वैसे ही यहां जानना ॥१॥ अब दशवा स्थितिद्वार. अहो भगवन् ! उन जीवों की कितनी स्थिति कही? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की ॥१०॥अग्यारहवा समुद्धात द्वार-अहो भग उन जीवों को कितनी समुद्धात कही ? अहो गौतम ! वेदनीय, कषाय व मारणांतिक ऐसी तीन समुद्धात
उन्निसवा शतक का तीसरा उद्देशा
...