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________________ 8. KAAWAJanammananamannaam ~ . पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 4. परिणयाय असत्थपरिणयाय, एवं जहा धण्णसरिसवा जाव से तेणट्रेणं जाव अभक्खे यावि ॥ १०॥ कुलत्था ते भंते ! भक्खेया अभक्खया ? सोमिला ! कलत्था मे भक्खेयावि अभक्खयावि ॥ सेकेण?णं जाव अभक्खेयावि? सेणूणं ते सोमिला! बंभण्णएसु दुविहे कुलत्था पण्णत्ता, तंजहा-इत्थिकुलस्थाय, धण्णकुलत्थाय ॥ तत्थणं जे ते इत्थिकुलत्था ते तिविहा षण्णत्ता तंजहा कुलकणियाइवा, कुलमाउयाइवा, कुलधूयाइवा ॥ ते समणाणं णिम्गथाणं अभक्खेया ॥तत्थणं जे ते धण्णकुलत्था एवं जहा धण्ण सरिसवा । से तेणटेणं जाव अभक्खेयावि ॥१०॥ एगं भवं, दुवेभवं अक्खए भवं, के दो भेद शस्त्र परिणत व शस्त्र परिणत रहित वगैरे जैसे सरिसव का कहा वैसे ही जानना. यारस् इसी से यावत् अभक्ष्य है ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! कुलत्थ क्या भक्ष्य है या अभक्ष्य है ? अहो सोमिल ! कुलत्थ भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है. अहो भगवन् ! किस कारन से कुलत्थ भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है ? अहो मोमिल ! ब्राह्मण शास्त्र से कुलत्थ के दो भेद किये हैं. १ स्त्री कुलत्थ व २ धान्य कुलत्य; उन में स्त्री कुलत्थ के तीन भेद कहे हैं १ कुल की कन्या २ कुल की माता ३ कुल की वधू. ये श्रमण निर्गन्थों को अभक्ष्य हैं. और जो धान्य कुलत्थ है उसका धान्य सरिसब जैसे कहना. इसलिये ऐसा कहा गया अठारहवा शतक का दशवा उद्देशा भावार्थ 4
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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