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________________ त्र 24 २३७४ पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र' Part सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ सरिसबा भक्खेयावि अभक्खेयावि ? से गूणं ते सोमिला ! बंभण्णएमु दुविहा सरिसवा पण्णत्ता, तंजहा मित्तसरिसवाय, धण्णसरिसवाय, तत्थणं जेते मित्त सरिसवा ते तिविहा पण्णत्ता तंजहा-सहजायया सहवाट्ठिया, सहपंसुकीलिया, तेणं समणाणं णिग्गथाणं अभक्खेया ॥ तत्थणं जे ते धण्णसरिसवा ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-सत्थपरिणयाय, असत्थपरिणयाय; तत्थणं जेते असत्थपरिणया तेणं समणाणं णिग्गंथाणं अभक्खया, तत्थणं जे ते सत्थपरि णया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-एसाणजाय अणेसणिज्जाय ॥ तत्थणं जे ते अणे भी है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है कि मरिसव भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है ? Hो सोमिल ? ब्राह्मणों के शास्त्रों में सरिसव के दो भेद कहे हैं. १ मित्र सरिसव और २ धान्य सरिसव. = उन में मित्र सरिसव के तीन भेद किये हैं ? साथमें जन्मे हुवे, २साथ ही वृद्धि पाये हुव, और ३वाल्यावस्था में साथ ही क्रीडा किये हुए. यह मित्र सरिसव श्रमण निर्ग्रन्थोंको अभक्ष्य है. अब जो धान्य सरिसव है उस के दो भेद कहे हैं. शस्त्र परिणत व शस्त्र परिणत नहीं. उस में जो शस्त्र परिणत नहीं है वह श्रमण निग्रंथों को अभक्ष्य है, और जो शस्त्र परिणत है उस के दो भेद एषणिक व अनेषणिकः उस में से अनेषणिक श्रमण ७. प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ 4.28
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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