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सूत्र
* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 405403
भावार्थ ।
केणं कारणेणं अज्जो ! अम्हे तिविहं तिविहेणं असंजय जाव एगंत वालायावि भवामो ? ॥ तएणं ते अण्णउत्थिया भगवं गोयमं एवं वयासी तुब्भेणं अजो ! रीयं रीयमाणा पाणं पेचेह अभिहणह जाव उद्दवेह, तरणं तुब्भे पाणे पेच्चमाणा जाव उद्दवेमाणातिविहं जात्र एगंतबालायावि भवह. ॥ ७ ॥ तणं भगवं गोयमे ते
उत्थि एवं वयासी णो खलु अज्जो ! अम्हे रीयं रीयमाणा पाणा पेचेमो, जाव उवेमो, अम्हेणं अजो ! रीयं रीयमाणा कार्यं च जोयं च रीयं च पडुच्च दिस्सा पदस्सा यामो, तणं अम्हे दिस्सा २ वयमाणा प्रदेस्सा वयमाणा २ णो पाणे पेचेमो
यावत् एकांत बाल हैं ? तर अन्य तीर्थिकोंने ऐसा उत्तर दिया कि अहो आर्यो ! तुम चलते हुवे प्राणोंको आक्रमते हो, हणते हो यावत् मारते हो. इस तरह प्राणियोंको आक्रमते, हणते यावत् मारते हुवे तुम तीन करन तीन योग से एकांत बाल हो ॥ ७ ॥ तब भगवान् गौतम उन अन्यतीर्थिकों को ऐसा बोले अहो आर्यो ! गमन करते हुवे हम प्राणियों अतिक्रमते नहीं है यावत् उपद्रव नहीं करते हैं परंतु चलते हुवे काया योग, व परिभ्रमण आश्री देख २ कर चलते हैं. इस तरह देख २ कर चलते हम प्राणियों को अतिक्रमते नहीं है यावत् उपद्रव नहीं करते हैं. प्राणियों को नहीं अतिक्रमते यावत् उपद्रव नहीं कर
त
+4 अठारहवा शतक का आठवा उद्देशा 8443
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