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________________ सूत्र भावार्थ १०३६० अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी समए रायगिहे जाव पुढबीसिलापट्टए || ३ || तस्सणं गुणसिलस्स चेइयरस अ दूरसामंते बहवे अण्णउत्थिया परिवसंति ॥ ॥ तरणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया ॥ ५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे जाघ उढुं जाणू जाव विहरइ ॥ ६ ॥ तणं ते अण्णउत्थिया जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता भगवं गोमं एवं वयासी तुब्भेणं अज्जो ! तिविहं तिविहेणं असंजय जाव एगंतवालायावि भव || ६ || तणं भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं वयासी से * प्रकाशक राजावहदुर लाला सुखदेव सहायत्री ज्वालाप्रसादजी * { राजगृह नगर यावत् पृथ्वी शीलापट्ट था || ३ || उस गुणशील उद्यान की पास बहुत अन्यतीर्थिकों रहते थे ॥ ४ ॥ वहां श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे यावत् परिषदा पीछी गई ॥ ५ ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अंतेवासी यावत् ऊर्ध्व जानु से यावत् विचरने लगे ||६|| तत्र वे अन्यतीर्थिक जहां गौतम स्वामी थे वहां आये और भगवान् गौतम को ऐमा बोले कि अहो आर्यो! तुम तीन करन तीन योग से असंयति यावत् एकांत घालहो || ६ || तब भगवान् गौतम उन अन्यतीर्थिकों को बोले कि अहो आर्यो ! किस कारन से हम तीन करन तीन योग से अविरति असंयति । २३५८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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