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सूत्र
भावार्थ
409 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
वावहारियणएय, वावहारियणयस्स कालए भमरे, णिच्छिइयणयस्त पंचत्रपणे जाव अट्ठफासे ॥२॥ सुयपिच्छेणं भंते ! कइवण्णे पण्णत्ते ? एवंचेत्र णवरं वावहारिणयस्स लिए सुयपिच्छे, णेच्छइयस्स णयस्स सेसं तंचेव ॥ एवं एएणं अभिलावेणं लोहितिया मंजिट्ठिया, पीतिया हालिद्दा, सुकिल्लए संखे, सुब्भिगंधे कोट्ठे, दुब्भिगंधे-मियगसरीरे, तित्तेणं णिंबे, कडुया सुट्ठी, कसाए तूंयरए कविट्ठे, अंवा अंबालिया, महुरे खंडे; कक्खडे वइरे, मउए नर्वेणीए, गुरुए अए, लहुए उलुयपत्ते, सीए हिमे, उस
निश्चेय और व्यवहार ऐसे दो नय ग्रहण किये गये हैं. व्यवहारनय से मधुररसवाला गुड है और निश्चयनय से गुड में पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस व आठ स्पर्श पाते हैं. अहो भगवन् ! भ्रमर में कितने वर्णादि पाते ? अहो गौतम ! यहां पर भी दो नय ग्रहण किये हैं, जिन में व्यवहार नयसे भम्रर में काला वर्ण पाता {है और निश्चयनय से पांच वर्ण यावत् आउ स्पर्शे पाते हैं. ॥ २ ॥
अहो भगवन् ! शुक की पांख में
कितने वर्ण पाते हैं ? अहो गौतम ! यहां भी दो नय ग्रहण किये हैं. व्यवहारनब से शुरू की पांख में {हरा वर्ण पाता है और निश्चय नय से पांच वर्ण यावत् आठ स्पर्श पाते हैं. और भी इस आलापक १ लोकोतर संज्ञा २ लोक संज्ञा.
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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