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सत्र
पंचमांगविवाह पण्णनि ( भगवती ) सूत्र 8882
वकं विउव्वइ जाव णो तं तहा विउव्वइ, तत्थणं जे से अमायी सम्मदिट्ठी उबवण्णए असुरकुमारदेवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ जाव तं तहा विउव्वइ ॥ दो भंते! नागकुमारा एवंचव, एवं जाव थणियकुमारा ॥ वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया एवं चेव ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ अट्रारसमस पंचमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १८ ॥५॥ फाणियगुलणं भंते ! कइबण्णे, कइगंधे, कइरसे, कइफासे, पण्णत्ते ? गोयमा एस्थणं दोणया भवंति तंजहा निच्छइएणएय, बावहारियणएय, ॥ वावहारियणयस्स गोडे फाणियगुले. णिच्छइयणयस्स पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे अट्टफासे ॥१॥ भमरेणं
भंते ! कइवण्णे पुच्छा ? गोयमा ! एत्थणं दो णया भवंति, तंजहा णिच्छइयणएय उत्पन्नक और २ अमायी समदृष्टि उत्पन्नक. उन में मायीमिथ्यादृष्टि उत्पन्नक असुरकुमार ऋजु का वैक्रय करके यावत् वैसा बैक्रेय नहीं कर सकते हैं. और जो अमायी सम्यग्दृष्टि असुरकुमार ऋजु वैक्रेय करूंगा ऐसा करके यावत् वैक्रेय करता है. ऐसे ही नागकुमार यावत् स्तनितकुमार वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सस हैं. यह अठारहवा शतक का
पांचवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १८ ॥ ५ ॥ olo पांचवे उद्देशे में सचेतन वस्तु की विचित्र वक्तव्यता कही, छठे उद्देशे में अचेतन वस्तु का स्वरूप कहते ॐहैं. अहो भगवन् ! ढीले गुड में कितने वर्ण, गंपरस व स्पर्श कहे हैं.? अहो गौतम ! इस
488+ अठारहवा शतक का छट्ठा उद्देशा 49