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१२ अनुवादक-चालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
अदिण्णादाणणवि ॥ मेहुणेणवि ॥ परिग्गहेणवि ॥ एवं एए पंचदंडगा ॥ जं समएणं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ अपुट्ठाकजइ, एवं तहेब जाव वत्तव्यं सिया,जाव वेमाणियाणं ॥ एवं जाव परिग्गहेणं ॥ एवं एएवि पंचदंडगा जं देसेणं भंते ! जीवाणं पाणाइवाइएणं किरिया कज्जति जाव परिग्गहेणं, जं पदेसेणं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजति सा भंते ! किं पुट्ठा कजइ एवं तहेव दंडओ ॥ एवं जाव परिग्गहेणं ॥ एवं एए वीसदंडगा ॥ ३ ॥ जीवाणं
भंते! किं अत्तकडे दुक्खे, परकडे दुक्खे, तदुभयकडे दुक्खे ? गोपमा ! अत्तकडे कहा वैसे ही मृषावाद का जानना. ऐसे ही अदत्तादान, मैथुन व परिग्रह का जानना. ॥२॥ अहो भग न् ! एक समय में जीवों को प्राणातिपात सं जो क्रिया होती है वह क्रिया सही हुई होता है या विना स्पर्शी हुई। होती है ? अहो गौतम : पूर्वोक्तवक्तगता जैसे वैमानिक तक कहना. एसे ही मृषावाद यावत् परिग्रह का जानना. अहो भगवन् ! एक देश में जीवों को प्राणातिपात मे जो क्रिया होती है यह क्रिया याजन् परिग्रह पर्यंत जानना. एक प्रदेश में प्राणातिपाल से जो क्रिया होती है. वह क्रिया या सर्शी हुई होरे या विना स्पर्शी हुई होवे ? इस का भी पूक्ति जैसे जानना. ऐसे ही परिग्रह पर्यंत कहना. ऐस बीस दंडक का
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ