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चलंतिवा चालसंतिवा, से तेणटेणं जाव सोइंदिय चलणा साइदिय चलणा॥ एवं जाव फासिदिय चलगा ॥१०॥ सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ मणजोग चलणा ? मणजोग चलणा गोयमा! जंणं जीवा मणजोए वट्टमाणा मणजोगप्पाओग्गाई दबाई मणजोगत्ताए परिणामेमाणे मणचलणं चालेंसुवा चलंतिका चलिस्संतिवा, से तेण?णं जाव मणजोगचलणा मणजोगचलणा ॥ एवं वयजोग चलणा एवं कायजोगचलणावि ॥ ११ ॥ अह भंते ! संवेगे, णिव्वेगे, गुरुसाहम्मिय सुस्सूसणया, आलोयणया,
जिंदणया, गरहणया, खमावणया, सुतसहायता, विउसमणया भावे, अप्पडिबद्धता, भावार्थ
प्रायोग्य द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रियपने पर गमाते हुवे श्रोवेन्द्रिय की चलना चली, चलते हैं व चलेंगे इमलिये ऐसा
कहा गया है कि श्रोत्रन्द्रिय की चलना. एसे ही स्पर्शेन्द्रिय की चलना तक कहना ॥ १० ॥ K- अहो भगवन् ! मनयोग चलना किसे कहते हैं ? अहो गौतम ! मनयोग में बननेवाले
जो : जीवों हैं वे मन प्रायोग्य द्रव्य को मनयोगपने परिणपाते मन चलनां चले, चलते हैं व चलेगे इस लिये यावत् मनयोग चलना. ऐसे ही वचन योग । काया योग का जानना. ॥११॥ अहो भगवन् ! १ मोक्षकी अभिलाषा रूप संवेग भाव से २ संसार स्पाग रूप निगे भाव से
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*