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११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
खेजगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेरसा विसेसाहिया॥ २ ॥ एएमिणं भंते! दीवकुमाराणं कप्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साणय कयरे कयरोहितो अप्पट्ठियावा महिद्वियावा ? गोयमा ! कण्हलेस्साहितो पीललस्ता महिड्डिया जाव सव्यमहिड्डिया वा तेउलेस्सा ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ जाब विहरइ । सालसमरस एगारसमो उद्देसो सम्मत्ता ॥ १६ ॥ ११ ॥ उहहिकुमाराणं भंते ! सव्वे समाहारा एवंचर सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सोलसमस्स
बारसमो उद्देसो सम्पत्तो ॥ १६ ॥ १२ ॥ नीललेश्या वाले विशपा धिक, और कणच्या वाले विशेषाधिक ॥२॥ अहो भगवन् ! इन कृष्ण लेश्या वाले यारत तेजोलेश्या वाले में कौन किस म अल्प ऋद्धि वालं. यावत् बहन ऋद्ध वाले हैं ? कृष्ण लेश्या वाले सं नील लेश्या वाले महक,नील लेश्या वाले स कापान .श्या वाल महद्धिक और कापोत रेश्या वाल स तेजो लश्या वाले महद्धिक. अहो अगरन् ! आपके वचन सत्य हैं, यों कहकर तप-यम से आत्मा को भावले हुर विचरने लगे. यह सोलहवः शक का अरमारया उदशा संपूर्ण वा ॥ १६॥ ११ ॥
अहो भगवनू ! क्या उदधिकमारब समआहार करने वाल हैं ? वगेरह से द्विप कुमार का कहा वैसे ही यहां कहना. यह सोलहवा शतक का वारहवा उद्दशा संपूर्ण हुवा ॥ १६ ॥ १२ ॥
प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ