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________________ तंचेव जाव बली वइरोयर्णिदे बली ॥ सेवं भंते भंतेत्ति जाव विहरइ ॥ सोलसमस्स णवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १६ ॥ ९॥ ४ . x कइविहेणं भंते ! ओही पण्णता ? गोयमा ! दुविहा ओही पण्णत्ता तंजहा ओही पदं णिरवसेसं भाणियव्वं सेवं भंते भंतेत्ति ॥ जाब विहरइ ॥ सोलमस्स दसमो उद्देसो सम्मत्तो ! १६ ॥ १० ॥ २२५० भावार्थ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी कहना, आत्मरक्षक, सामानिक अग्रमाहिषियों, परिषदा, अनिका सब का निरवशेष वर्णम् कहना. स्थिति एक सागरोपम से कुच्छ अधिक कहना. अहो भगवन् ! आप के बचन मत्य हैं यों कहकर तपसंयम से आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे, यह सोलहवा शतक का नववा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ १६ ॥९॥ ३ नववे उद्देशे में देवता का कथन किया, देवता को अवधि ज्ञान होता है इस से अवधि ज्ञान का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! अवधि ज्ञान के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! अवधि ज्ञान के दो भेद कहे हैं.? भव प्रत्यायक जो नारकी देवता व तीर्थंकरों को होता है सो और २ क्षायोपशमिक कों का क्षय होने से होवे. इस का विस्तार पूर्वक कथन पनवणा के तेत्तीस वे पद में कहा है. अहो भगवन् आप के वचन सत्य हैं, यह सोलहवा शतक का दशवा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ १६ १० ॥ ... प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी |
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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