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पंचमांग विवाह पस्णत्ति ( भगवती ) सूत्र+8+
एगिदियप्पदेसाय, अणिंदियप्पदेसाय, अहवा एगिदियप्पदेसाय अणिदियप्पदेसाय बेइंदियस्सदेसा, अहवा एगिंदियप्पदेसाय अणिदियप्पदेसाय वेइंदियाणयप्पदेसा. एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचिंदियाणं ॥ अजीवा जहा दसमसए तमाए तहेव गिरव सेसं भाणियव्वं ॥ ४ ॥लोगस्सणं भंते ! हेदिल्ले चरमंते किं जीवा पुच्छा? गोयमा ! णो जीवा, जीवदेसावि जीवप्पदेसावि जाव अजीवप्पदेसावि, जे जीवदेसा ते णियमं एगिदियदेसा, अहवा एगिदिय देसाय वेइंदियस्सदेसे, अहवा एगिदिय देसा न्द्रिय के बहुत देश, अनेन्द्रिय के बहुत देश और बेइन्द्रिय का एक देश, अथवा एकेन्द्रिय के बहुत देश, व अनेन्द्रिय के बहुत देश व बेइन्द्रिय के बहुत देश यों मध्य के भामे का विरह कहना ऐसे ही पंचेन्द्रिय पर्यंत कहना. जो जीव प्रदेश है वे निश्चय ही एकेन्द्रिय के बहुत प्रदेश व अनेन्द्रिय के बहुत प्रदेश हैं अथरा एकेन्द्रिय के बहुत प्रदेश अनेन्द्रिय के बहुत प्रदेश व बेइन्द्रिय के एक प्रदेश अथवा एकेन्द्रिय के -
बहुत प्रदेश बेइन्द्रिय के बहुत प्रदेश व अनेन्द्रिय के प्रदेश यों पहिला छोड कर यावत् पंचेंद्रिय तक कहना... ore अजीव का देशवे शतक जैसे कहना. तमादिशा का भी वैसे ही निरवशेष कहना. ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! Vलोक का नीचे का चरमांत में क्या जीव हैं वगैरह पृच्छा अहो गौतम ! जीव नहीं है जीव देश यावत् ।
सोलहवा शतक का आठवा
भाव
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