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शब्दार्थ |
सूत्र
थाचा भ
* पंचमांग विवाद पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
(स्वप्न पा० देखे अ० यथातथ्य पा० देखे अ असंवृत सु० स्वप्न पा० देखे त तैसा अ० अन्यथा हो ० ( हांवे सं० संवता संवृत सु० स्वप्न पा० देखे ए० ऐस || ४ || सरल || ६ || क० कितने मं० भगवन् सु० स्वप्न ५० कहे गो० गौतम बा० बीयालीस सु० स्वप्न प० कहे ॥ ६ ॥ क० कितने भं० भगवन म असंवडे सुविणं पास, संवुडासंबुडे सुविणं पासइ ? गोयमा ! संबुडे सुविणं) पासइ, असंवडेवि सुविणं पासइ, संबुडासंकुडेवि सुविणं पासइ ॥ संबुडे सुविणं पासइ अहातच्चं पासइ, असंबुडे सुविणं पासइ तहावा तं होज्जा अण्णहात्रा तं होना, संबुडा बुडे सुविणं पासइ एवंचेव ॥ ४ ॥ जीवाणं भंते ! किं संबुंडा अबुडा संवुडावुडा ? गोयमा ! जीवा संबुडावि असंवुडावि संवुडाबुडात्रि ॥ एवं जहेव सुत्ताणं दंडओ तहेव भाणियव्व ॥ ५ ॥ कइणं भंते ! सुविणा पण्णत्ता ? गोमा बायालीसं सुविणा पण्णत्ता ॥ ६ ॥ कइणं भंते! महासुविणा पण्णत्ता ? करने वाले संवृति को क्या न आता है असंवृति को भी स्वप्न आता है, और संवृतासं
वृति को भी स्वम आता है परंतु संवृति को यथातथ्य स्वयं आता है और शेष दोनों को मेब तरह के स्वम आते है ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! जीव क्या संवृति है असंवृति है या संवृता संवृति है ! अहां गौतम ! जीवों तीनों प्रकार के हैं. ऐसे ही जैसे पहिले सुप्त जीवों के दंडक कहे थे वैसे ही यहां जानना ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! कितने स्वप्न कहे हैं ? अहो गौतम ! बीयालिन स्वम कहें
4- सोलहवा शतक का उछ उद्देशा 496
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