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शब्दार्थ वा विशिष्ठ द्रव्य से नीपना अ० धारा रहित मुं० मुंड १० कुहाडा से अ० छेदे त० तब से वह पु०१.
पुरुष म० बडे स० शब्द क. करे जो नहीं म. बडे द. टुकडे अ० करे ए. ऐसे गो० गौतम २०० नारकी को पा० पापकर्म गा० गाढकिये हुवे चि० चीकने किये हुवे एक ऐसे ज• जैस छ छठे शतक | झुझते पिवासिए दुबले किलंते एगं महं कोसंबगंडियं सुकं जडिलं गंठिल्लं
चिक्कणं वाइद्धं अपत्तियं मुंडेणं परसुणा अक्कामेजा; तएणं से पुरिसे महंताई सहाई
करेइ, णो महंताई २ दलाई अवदालेइ, एवामेव गोयमा ! गैरइयाणं पावाई कम्माई. भावार्थ सकते हैं यावत् चौला करते हुवे श्रमण निग्रंथ जितने कमों की निर्जरा करे उतने कर्मों की निर्जरा नरक में 2
रहे हवे नारकी क्रोड वर्ष में, प्रत्येक क्रोड वर्ष में अथवा कोडाकोड वर्ष में भी नहीं कर सकते हैं ? अहो गौतम! जैसे कोई पुरुष जीर्ण, वृद्धावस्था से जर्जरित देहवाला व शिथिल त्वचावाला होवे, मिस के
गात्रों में करचलियों पडगइ होवे, जिस के दांत की श्रेणीखकर विखर होगइ होवे, अथवा दांत पडे गये TE होवे वैसा, उष्णता व वृषा से पराभव पाया हुवा, दरिद्रि, क्षुधावंत, पिपासु, दुर्बल, व थका हुवा होवे. वह
सूका जटावाला, गांगेवाला चिकना व विशिष्ट द्रव्य से बना हुवा एक कमूवे (खांखरे) फ्लास वृक्ष को धारा रहित कुहाडे से काटने में प्रवते. तब वह पुरुष बहुत बडे२ शन्दों करे परंतु उस काष्ट का विशेष भाग छेदन कर सके नहीं. ऐसे ही अहो गौतम! नारकी के पाप कर्मों गाढे चीकने बगैरहजै
पंचमांग विवाहपष्णत्ति ( भगवती) मूत्र
सोलहवा शतक का चौथा उद्देशा 4887
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