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शब्दार्थ 4 करने लगे ॥२॥ धधर्मकथा जा यावत् प० परिषदा पपीछीगड ॥३॥ त तब से वह स० शक्र दे.
देवेन्द्र द. देवगजा स• श्रमण भ० भगवंत म० महावीर की अंपास से धधर्म सो सुनकर णि अवधार कर हहृष्ट तुतुष्ट सश्रमण भ भगवंत म०महावीर को वंदनाकर णनमस्कार कर ए ऐसा व०बोला
कितने भं• भगवन् उ० अवग्रह प० कहे सशक पं० पांच प्रकार के उ० अवग्रह प० प्ररूपे तं० तद्यथा
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48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
जाव णामगं सावेत्ता पज्जुवासइ ॥ २ ॥ धम्मकहा जाव पडिगया ॥ ३ ॥ तएणं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्ट तुट्ठ समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदइत्ता गमंसइत्ता एवं वयासी-कइणं
भंते ! उग्गहे पण्णत्ते ? सक्का ! पंचविहे उग्गहे पण्णत्ते. तंजहा-देविंदोग्गहे, रायो। पालक विमान था. व शक्रेन्द्र को उत्तर दिशि में आने का द्वार है. ईशानेन्द्र नंदीश्वर द्वीप की ईशान कौन में रितिकर पर्वत पर उतरे थे. और शक्रंन्द्र अग्निकौन के रतिकर पर्वत पर उतरे वगैरह शेष सब अधिकार
ईशानेन्द्र जैसे कहना यावत् अपना नाम कहकर सेवाभक्ति करने लगा ॥२॥ भगवंतने धर्मकथा सुनाइ 2 यावत् परिषदा पीछी गई ॥ ३ ॥ अब वह शक्र देवेन्द्र देवराजा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास
धर्म सुनकर हृष्ट, तुष्ट यावत् आनंदिन हुवा और श्रमण भगवंत को चंदना नमस्कार कर ऐसा पोला कि
- सोलहवा अतक का दूसरा उद्देशा
भावार्य
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