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* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
अत्थिणं भंते ! अणुत्तरोववाइया देवा ? हंता अस्थि ॥ से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-अणुत्तरोववाइया देवा अणुत्तरोववाइया देवा ? गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं अणुत्तरा सद्दाअणुत्तरा रूवाजाव अणुत्तरा फासा, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जाव अणुत्तरोववाइया देवा ॥ १२ ॥अणुत्तरोवबाइयाणं भंते ! देवा केवइएणं कम्मावसे. सेणं अणुत्तरोववाइय देवत्ताए उववण्णा ? गोयमा ! जावइयं छ?भत्तिए समणे णिग्गंथे कम्मं णिजरेइ एव इएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववाइय देवत्ताए उव
वण्णा ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति । चउद्दसम सयस्सय सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥१४॥७॥ पपातिक देव क्या है ? हां गौतम ! अनुत्तरोपपानिक देव है. अहो भगवन् ! किस कारन से अनुत्तरोपपातिक कहाये गये हैं ? अहो गौतम ! अनुत्तरोपपातिक देव को अनुत्तर शब्द, रूप, गव यावत् अनुत्तर स्पर्श है. अहो गौतम ! इस कारन से अनुत्तरोपपातिक देव कहाये गये हैं ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! किस कर्म विशिष्ट से अनुत्तरोपपातिक देव देवतापने उत्पन्न हुए हैं ? अहो. गौतम ! छठ भक्त से जितने कर्म श्रमण निग्रंथ निर्जरते हैं. इतने ही कर्म विशिष्ट से अनुत्तरोपपातिक देव देवतापने उत्पन्न हुये हैं. अहो भगान् ! आप के वचन सत्य हैं. यह चउदहवा शतक का सातवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥१४॥३॥
*प्रकाशक-राजाबहादूर लाला मुखदेनसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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भावार्थ