________________
शब्दार्थ
38
ङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
mmmmmmmmmmmwwinninrawinawwwwwwwwwwww
ते तैसे जा० यावत् जी जीव क० कर्म संग्रहिन से० वह ज० जैसे के० कोइ पुरुष ब. मशक को आ० भरे क० कटि से बं०षांघेअ अगाध म तल अ०बहुत पु० पुरुषपमाण उ०पानी में ओ० प्रवेश करे से० ० वह णू निश्चय गो० गौतम से० वह पु० पुरुष त० उस आ० पानी की उ० उपर चि० रहे है. हां।। चि० रहे एक ऐसे अ० आठ प्रकार की लो लोकस्थिति प० प्ररूपी जा: यावत जी. जीव क. कर्म संग्रहित ॥ १६ ॥ अ० है भं० भगवन जी• जीव पो० पुद्गल अ० अन्योन्य व० बंधाये हुवे अ० अन्योन्य
जहावा केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ २ त्ता कडीए बंधइ अत्थाह मतारम पोरिसियं उदगंसि ओग्गाहेजा ॥ सेणूणं गोयमा ! से पुरिसे तस्स आउयायस्स उवरिमतले चिट्ठइ ? हंता चिट्ठइ ॥ एवं वा अट्ठविहा लोयट्ठिई पण्णत्ता, जात्र जीवा कम्म
संगहिया ।।१६॥ अस्थिणं भंते ! जीवा य पोग्गला य अण्णमण्ण बद्धा, अण्णमण्ण करके आगे जावे तो क्या गौतम ! वह पुरुष पानी पर तीरता हुवा रहता है ? गौतम स्वामी कहते हैं कि वह पुरुष पानी पर ही तीरता हुवा रहता है. जैसे वह पानी पर ही तीरता हुवा रहता है वैसे ही अहो । गौतम'! 'आकाश प्रतिष्ठित बायु वगैरह आठ प्रकार की लोक स्थिति कही है ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! जीव व पुद्गल परस्पर क्या बंधे हुवे हैं ! परस्पर एक २ को स्पर्श हुवे हैं ? परस्पर चिकनाइ से लगे
पहिला शतक का ग्रठा उद्दशा
भावाथ 5