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ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी gh
णेरइएसु उववजंति, जोतिरि गोमणु, देवेसु उववजंति ॥ जइ देवेसु उवरजति किं भवणवासि पुच्छ!? गोयमा ! णो भवणवासी देवेसु उववज्जति, णो वाणमंतर, णो जोइ सिय, वैमाणिय देवेसु उववजंति, सव्वेसु वेमाणिएसु उववजंति, जाव सव्वट्टसिद्धे उववजंति, अत्थगइया सिजंति जाव अंतं करेंति देवाहिदेवाणं भंते ! अणंतरं उहित्ता कहिं गच्छंति कहिं उववजंति ? गोयमा ! सिझंति जाव अंतं करेंति भावदेवाणं भंते! अणंतरं उब्वटित्ता पुच्छा ? जहा वकंतीए असुरकुमाराणं उव्वदृणा
तहा भाणियव्वा ॥ ६ ॥ भवियदव्वदेवाणं भंते ! भवियदव्वदेवोत्त कालओ केवनरक में उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! धर्मदेव चवकर कहां उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! नरक, तिर्यंच व मनुष्य में नहीं उत्पन्न होने से पांत देवलोक में उत्पन्न होते हैं. जर देवलोक में उत्पन्न होते हैं. नब सब वैमानिक देव में सर्वार्थ सिद्ध वैमानिक तक उत्पन्न होते हैं और कितनेक सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त होते. अहो भगवन ! देवाधिदेव कहां उत्पन्न होते है ? अहो गौतम ! देवाधिदेव भीझते है. बत यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं. अहो भगवन् ! भावदेव वहां से चवकर कहां उत्पन्न होते हैं ? अहो । गौतम ! जैसे असुर कुमार का उत्पन्न होने का कहा वैसे ही उतना कहना ॥ ॥६|| अहो भगवन् !
- प्रकाशक रामबहादुर लाला सुखदेवप्सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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