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सव्वेसु उववजति जाव सन्वट्ठ सिद्धत्ति, सेसा खोडेयव्वा । भावदेवाणं भंते ! कओहितो उववज्जति ? एवं जहा वकंतीए भवणवासीणं उववाओ तहा भाणियब्वं ॥३॥ भवियदव्वदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतो. मुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं ॥ णरदेवाणं पुच्छा? गोयमा ! जहण्णेणं सत्तवाससयाई उक्कोसेणं चउरासीति पुव्व सयसहस्साई। धम्मदेवाणं भंते । पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं देसूणाई पुवकोडी । देवाहिदेवाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं बावत्तारें वासाई, उक्कासेणं चउरासीइ पुव्व सयसहस्साइं। भाव
देवाणं पुच्छा? गोयमा ! जहणणं दसवास सहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवभावार्थ
वैमानिक में से उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! भावदेव कहां से उत्पन्न होते हैं ? कहो गौतम ! जैसै पनवगा मूत्र में छठे पद का कहा वैसे कहना. यह तीसरा उत्पत्ति द्वार हुवा ॥ ३ ॥ अहो भगवन् भाविक द्रव्य देव की कितनी स्थिति कही ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहर्त उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही. नरदेव
की स्थिति जघन्य सातसो वर्ष की उत्कृष्ट चौरासी लक्ष पूर्व की, धर्मदेव की स्थिति जघन्य अंतर्मुहुर्त org 16उत्कुष्ट देशऊणा क्रोड पूर्व, देवाधिदेव की स्थिति जघन्य बहात्तर वर्ष उत्कृष्ट चौरासी लक्ष पूर्व. भावदेव की
पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
___88 चारहवा शतक का नववा