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शब्दार्थ
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श्री अमोलक ऋषिजी
करेगा से वह भं भगवन् ॥ १२ ॥ १ ॥ ३.ते. उस काल ते.. उस समय में को. कौशाम्बी ण नगरी हो. थी व. वर्णन युक्त चं० चंद्रोत्तरा यनक चे० चैत्य व० वर्णन युक्त ॥ १ ॥ त० उस को० कौशाम्बी न० नगरी में सहस्रानीक र० राजा का पो० पौत्र स० शतानीक र०.राजा का पुत्र चे चेडा राजा का न० दौहित्र मि० मृगावती दे. देवी
दुवालसम सयस्सय पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १२ ॥ १ ॥ + x x तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबीणामं पायरी होत्था . वण्णओ, चंदोत्तरायणे चेइए वण्णओ, ॥ १ ॥ तत्थणं कोसंबीए णयरीए सहस्साणीयस्स रण्णो पोत्ते, सयाणीयस्स।
रण्णो पुत्ते, चेडगस्स रण्णो नत्तुए,मिगावतीए देवीए अत्तए, जयंतीए समणोवा सियाए । सपर्थ है ? अहो गौतम ! जैसे ऋषिभद्रपुत्र का कहा वैसे ही यहां जानना यावत् अंत करेंगे. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह बारहवा शतक का पहिला उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १२ ॥ १ ॥ . .
प्रथम उद्देशे में श्रावकका कथन किया दूसरे उद्देशे में श्राविका का कथन करते हैं. उस काल उम समय में कौशाम्बी नामक नगरी थी उस की ईशान कौन में चंद्रोत्तरायण नामक चैत्य था उस का वर्णन उबवाइ मूत्र से जानना ॥ १ ॥ उस कौशाम्बी नगरी में सहस्रानिक राजा का पौत्र, शतानिक राजा का पुत्र, चेटक राजा का दौहित्र, मृगावती रानी का आत्मज, और जयंति श्रमणोपासिका का भतीजा उदायन.
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालामसादजी *
8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी