________________
' शब्दार्थ
42 अनुवादक-लब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
मोक्ष ए. ऐसे म० मैंने दु० दोपकारे क० कर्म ५० प्ररूपेप०प्रदेश कर्म अ० अनुभाग कर्म त. तहां जं. जो प० प्रदेश कर्म तं० उस को गि. निश्चय वे० वेदे जं. जो अ. अनुपाग कर्म तं. उस को अ० कित. नेक वे० वेदे अ० कितनेक नो नहीं वे. वेदे णा० जाना अ• अरिहंतने सु० सूना अ• अरिहंतने वि० विशेषजाना अ० अरिहंतने इ० इस कर्म को अ० यह जीव उ० उदय आये वे० वेदना वे. वेदेगा अ०
जैसे कर्म अ० बांधे हैं ज. जैसे तं• उनको भ० भगान्तने दि० देखे त० तैते ५० परिणमेंगे ते. इस है दुविहे कंम्मे पण्णत्त तंजहा, पएसकम्मेय, अणुभागकम्मेय । तत्थणं जं तं पएसकम्मं तं ,
नियमा वेदेइ, तत्थगंजं तं अगुभाग में तं अस्याइयं देइ अत्थे गइयं नो वेदेइ णायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विण्णायमयं अरहया, इमं कम्मं अयंजीवे अभोवगमियाए ।
वेयणाए वेयइस्सइ.इमंकम्मअयं जीवे उवक्कमियाए वेयणाए वेयइस्सइ, अहाकम्मंअहाणि । वादिक अनेक प्रकार से भिन्न प्रकार के विभाग करके जाते हैं, अरिहंत को ' यह कर्म है, यह जीव, है' ऐसा प्रसज्ञ है. प्रवर्ध्या काल से लेकर ब्रह्मचर्य भूमिशयन, केशलोचनादिक का अंगीकार से निवर्तना सो अभ्युपगमिकी वेदना उस को यह जीव वेदेगा. स्वयमेव उदय में आये हुवे अथवा उदीरणा से उदय में लाये हुवे कर्मों को वेदना सो औपक्रमिकी वेदना, उस को या जीव वेदेगा. जैसे कर्म बांधे हैं, कर्म के देश कालादि है और जैसे २ भगवन्तने कर्म देखे वैसे २ परिणमेंगे. इसलिये अहो ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालापसादजी *
भावार्थ
G