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________________ 428 शब्दाथ स. सता के गि० गृह मे: प. नीकलकर जे. जहां बा. बाहिर की उ० उपस्थान शाला जे. जहां ध. धार्मिक जा० यान प० प्रधान ते. तहां उ० जाकर ध. धार्मिक जा. यान प. प्रधान दू० चढा ॥ ८॥ त० तव सा. वह दे० देवानंदा मा० ब्राह्मणी अं• अंदर अं० अंत:पुरमें ण्डा० स्नान किया क. बलि कर्म किया क० कोगले किय पा० तिल मसादि किये २० प्रधान पा० पाद प. प्राप्त ने० नुपूर म० मणि old मेखला हा हार र रचित उ० उचित का कडे ख. अंगली ए. एकावली कं० कंठसत्र उ. उरस्थ गिहाओ पडिणिक्खभइ पडिणिक्खमइत्ता, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता, धम्मियं जाणप्पवरं दुरुढे ॥८॥ तएणं सा देवाणंदा माहणी अंतो अंतेउरंसि व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल पायच्छित्ता किंते वरपादपत्तनेउरमाणमेहलाहाररइय उचिय कडय खड्गएगावलीस्नान किया यावर अल्प वजन व बहु मूल्यवाले आभरण शरीर पर धारण करके अपने ग्रह से नीकला. और बाहिर दीवानखाने में जहां प्रवर धार्मिक रथ था वहां आया और उस रथ में बैठा ॥ ८॥ उस 5 समय में देवानंदा ब्राह्मणीने स्नान किया, पानी के कोगले किये, तिलममादि किये पांवों में नुपूर व मणि १७की मेखला धारन की. हारों से वक्षस्थल, मुद्रिका मे अंगुलियों, कडे से भुजा, एकावलिमणिमय कटिसूत्र 1* से कटि वगैरह अनेक प्रकार की मणियों से जडित अनेक प्रकार के आभूषण धारन किये. चिनांशुक नामक पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा <be
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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