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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गोयमा एएस चउण्हवि कम्माणं मणू सरस जहा नेरइयस्स तहा भाणियां से संतंचेव ॥ १० ॥ जस्सणं भंते! नाणावरणिजं, तस्स दंसणावरणिजं, जस्स दंसणावरणिज्जं तस्स नाणावर - णिजं ? गोयमा जस्स नाणावरणिजं तस्स दंसणावणिज्जं नियमं अत्थि, जस्स दंसणावरणिजंतरसवि नाणावणिजं नियमं अस्थि ॥ जस्तणं भंते! नाणावरणिजं तस्स वेयणिज्जं जस्स वेणिज्जं तस्स नाणावरणिजं ? गोयमा जस्स नाणावरणिज्जं तस्स वेयणिजं नियमं अस्थि, जस्स पुणत्रेयणिजं तस्ल नाणावरणिज्जं सिय अस्थि सिय नत्थि ॥ जस्स पुण भंते ! तक जानना. परंतु वेदनीय. आयुष्य, नाम व गौत्र इन चार कर्मों का मनुष्य आश्री नारकी जैसे जानना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! जिम को ज्ञानावरणीय है उस को क्या दर्शनावरणीय है और जिस को दर्शनावरणीय है उस को क्या ज्ञानावरणीय है ? अहो गौतम ! जिस को ज्ञानावरणीय होता है उस को दर्शनावरणीय अवश्य होता है ओर जिस को दर्शनावरणीय होता है उस को ज्ञानावरणीय अवश्य ही होता अहां भगवन् ! जिस को ज्ञानावरणीय है उत को क्या वेदनीय है अथवा जिस को वंदनीय है उस को क्या ज्ञानावरणीय है ? अहो गौतम ! ज्ञानावरणीयवाले को वेदनीय कर्म निश्चय होता है परंतु वेदनीय कर्मवाले को ज्ञानावरणीय होता भी है और नहीं भी होता है केवल आश्री. अहो भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीयवाले को मोहनीय व मोहनीयवाले को ज्ञानावरणीय होता है ? अहो गौतम ! ज्ञाना
* प्रकाशक- राजावहादुर लाला सुखदेवमहायजी सादी
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