________________
१९९४
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
जीवाणं वेउब्वियसरीरस्स देसबंधगाणं सव्वबंधगाणं अबंधगाणय कयरे २ हितो जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा वेउब्वियसरीरस्स सव्वबंधगा, देसबंधगा असंखेज्जगुणा, अबंधगा अणंतगुणा ॥ २६ ॥ आहारग सरीरप्पओगबंधेणं भंते कडविहे प.? गोयमा ! एगागारे प०॥जाद एगागारे पण्णत्ते किं मणस्साहा. रग सरीरप्पओगबंधे, अमणुस्साहारग सरीरप्पओगबंधे ? गोयमा ! मणुस्साहारग सरीर प्पओग बधे, णो अमणुस्साहारग सरीर प्पओग बंधे, एवं एएणं आभलावेणं
जहा ओगाहण संठाणे जाव इड्डिपत्त पमत्त संजय सम्माद्दट्टि पजत्त संखेज वासाएकतीस सागरोपम उत्कृष्ट संख्यात सागरोपम. देशबंधका अंतर जघन्य प्रत्येक वर्ष उत्कृष्ट संख्यात सागरोपमा १॥ २८ ॥ अहो भगवन ! इन देश बंधक सर्वबंधक अवंधक में कौन किस से अल्प बहुत यावत् विशेषा}धिक है ? अहो गौतम ! सर्व से थोडे वैक्रेय शरीर सर्व बंधक इस से देशबंधक असंख्यात गने उस अबंधक अनंत गुने ॥ २६ ॥ अहो भगवन् ! आहारक शरीर प्रयोग के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! आहारक शरीर प्रयोग एकाकार ही है. यदि आहारक शरीर प्रयोग एकाकार है तो क्या मनुष्य आहारक शरीर एकाकार है या अमनुष्य [ मनुष्य सिवाय ] आहारक शरीर एकाकार है ? अहो गौतम
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
।