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49 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
रत्न हैं, विविध प्रकार के समास के समुह से मिथ्यात्व अज्ञान रूप शत्रुओं का दल बल को जीत ने वाला श्री महावीर महाराजा के बल से युक्त यह सूत्र रूप हाथी है. श्लोक-या षटा शत् सहस्त्रन्प्रति विधि, सजुषांविभ्रति प्रश्नवाचां। चलरिंशाच्छतेपु
प्रथयति परितः श्रेणि मुद्देशकानाम् ॥ रङ्गाक्लङ्ग तरङ्गानय गमगहना दुर्विगाहा
विवाह प्रज्ञप्ति । पंचमाङ्ग जयति भगवती सा विचिङ्गार्थ कोषः ॥ पांचवा विवाह प्रज्ञप्ति अपर नाम भगवती सूत्र है. सो महा सागर समान अत्यंत गहन, गंभीर गूढार्थ वाला है. इस में ४१ शतक १००० उद्देशे, और३६००० प्रश्न रूप हजारों तरंग उछलते हैं. इस समुद्र का गृह भेद रूय रत्नों विग्रह बृद्धि के धारक जनो को प्राप्त नहीं हो सकते हैं परंतु विद्वद्वरों ही प्राप्त कर सकते हैं. ऐसा यह भगवती सूत्र सदैव काल जयवंत रहो.
इस भगवती सूत्र का अनुवाद मुख्याता में धोराजी सर्वज्ञ भंडार से प्राप्त हुई धनपन सिंह बाबु की छपाइ हुइ प्रतपर से और कच्छ देश पावन कर्ता आठ कोटी मोटी पक्षवाले महंत मुनि श्री नागचंद्रजी महाराज के तरफ से एक पंचपाटी टीका वाली प्रत तथा एक टबा बाली प्रत साथमें रख कर किया है. वैसे ही भीनासरवाले श्रीमान कनीरामजी बाहादरमलजी बांठिया की तरफ से कुछ हिन्दी अर्थवाली प्रत ओर एक मेरी पास की प्रतपर से सुधारा किया है. इस की शुद्धि करने में यथा शक्ति व यथामति प्रयास किया हैं तथापि अशुद्धि रहने का संभव है तो विद्दद्वर्य शुद्ध करके पठन करेंगे.'
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसदजा