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चत्तारि णाणाइं तिण्णि अण्णाणाई भयणाए ॥ अण्णाणलाढयाणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ? नो णाणी, अण्णाणी, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए ॥ तस्स अलाहियाणं भंते ! गोयमा ! णाणी नो अण्णाणी पंचणाणाई भयणाए जहा अण्णाणस्सलद्धिया अलडिया भणिया, एवं मइअण्णाणस्स, सुयअण्णाणस्सय लदिया अलडिया भाणियव्वा ॥ विभंगणाणलद्धियाणं तिणि अण्णाणाई नियमा ॥ तस्स अलद्धियाणं पंचणाणाई भयणाए, दो अण्णाणाई नियमा । दसणलद्धियाणं भंते ! जीवा किण्णाणी अण्णाणी ? गोयमा ! नाणीवि अण्णाणीवि, पंचणाणाई तिण्णि अण्णा
णाई भयणाए ॥ तस्स अलद्धियाणं भंते ! जीवा किण्णाणी अण्णाणी ? गोयमा ! भावार्थ
की नियमा उस के अलब्धिक जीवों में पांच ज्ञान की भजना दो अज्ञानकी नियमा दर्शन लब्धिवाले जीवों ज्ञानी अज्ञानी दोनों हैं इन में पांच ज्ञान व तीन अज्ञान की भजना है दर्शन की अलब्धि का
अभाव है सम्यग् दर्शन की लब्धि वाले जीवों में पांच ज्ञान की भजना इस के अलब्धिये में तीन * अज्ञान की भजना है. पिथ्या दर्शन के लद्धिये में तीन अज्ञान की भजना है उस के अलद्धिये में पांच
ज्ञान तीन अज्ञान की भजना है. मिथ्यादृष्टि जैसे समयिथ्यादृष्टि का जानना. चारित्रलब्धिक नीवों में 1
43-23 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
आठवा शतक का दूसरा उद्दशा