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48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भावार्थ !
॥ ९ ॥ निरयगइयाणं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? गोयमा ! णाणीवि, अण्णाणीवि, तिणिण णाणाई नियमा तिण्णि अण्णाणाई भयणाए ॥ तिरिय गइयाणं भंते ! जीवा किंणाणी अण्णाणी ? दो णाणाई दो अण्णाणाइं नियमा, मणुस्स गइयाणं भंते! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? तिण्णि णाणाई भयणाए दो अण्णा
इं नियमा देवगतिया जहा निरयगतिया । सिद्धगइयाणं भंते ! जहा सिद्धा ॥ १० ॥ सइंदियाणं भंते! जीवा किं नाणी अण्णाणी ? गोयमा ! चत्तारि नाणाइं तिण्णि अण्णाणाई भयणाए || एगिंदियाणं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? जहा पुढ• नरक गतिवाले क्या ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? अहो गौतम ! ज्ञानी व अज्ञानी दोनों हैं. उन में तीन ज्ञान की नियमा व तीन अज्ञान की भजना तिर्यच गतिवाले जीव में दो ज्ञान दो अज्ञान की नियमा. मनुष्य गतिवाले जीव में तीन ज्ञान की भजना व दो अज्ञान की नियमा देवगति में तीन ज्ञान की नियमा व तीन अज्ञान की भजना है. विद्धगति में केवल ज्ञान की नियमा है ॥ तीसरा इन्द्रिय द्वार कहते हैं. जो इन्द्रेय सहित जीव है
१० ॥ उन में चार ज्ञान व तीन
अज्ञान की भजना है केवल ज्ञान अनेन्द्रिय को होता है इसलिये यहां नहीं लीया गया है. एकेन्द्रिय
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *