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दोवीससा परिणया; अहवाएगे पओग परिणए, दो मीसा परिणया, एगे वीससा परिणए अहवा दो पओग परिणया, एगे मीसा परिणए, एगेचीससा परिणए ॥ जइ पओग परिणए किं मणप्पओगपरिणए, एवं एएणं कमेणं पंचछसत्त जाव दस संखज
असंखेज अणंता दव्या भाणियन्वाःदुयासंजोएणं,तियासंजोएणं, जाव दससंजोएणं; बारस भावार्थ
वगैरह इस का द्वी संयोगी बारह विकल्प होते हैं. १ एक प्रयोग परिणत चार मीश्र परिणत २ दो प्रयोग परिणत तीन मीश्र परिणत ३ तीन प्रयोग परिणत तीन मीश्रपरिणत ४ चार प्रयोग परिणत एक मीश्र परिणत ऐसे ही चार भांगे प्रयोग व वीससा के होते हैं और मीश्र व वीस्रता के भी चार भांगे होते हैं. तीन संयोगी छ भांग १ तीन प्रयोग परिणत एक मीश्र व एक वीस्रता परिणत २ एक प्रयोग तीन मीश्र व एक वीस्रसा परिणत १३ एक प्रयोग एक मीश्र व तीन वीस्रप्ता परिणत ४ दो प्रयोग दो मीश्र एक वीस्रमा परिणत ५ दो प्रयोग एक मीश्र दो वत्रिमा परिणत और ६ एक प्रयाग दो मीश्रदा वीसना परिणत हैं. यहां यावत् शब्द से चतुष्कादि संयोग कहे हुवे हैं यहां पांच द्रव्य की अपेक्षा से सत्य मन प्रयोगादि चार में द्वी,त्री,चतुष्क, संयोगी भांग
होते हैं, द्वी संयोगी चौवीस भांगे होते हैं. चार पद के छ दी संयोगी और एक २ में अनुक्रम से चार २ 1 विकल्प इस से चौवीस हुवे. त्रीसंयोगी चौबीस, चतुष्क संयोगी चार भांगे. एकेन्द्रियादि पांच पद में,
-43 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भवगती)सूत्र
आठवा शतकका पहिला उद्देशा