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सूत्र
भावार्थ
9 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गिदिय ओरालिय सरीर जाव परिणए, किं सुहुम पुढवि काइय जाव परिणए, बादर ढकाइ एगंदि जाव परिणए ? गोयमा ! सुहुम पुढवि काइय एगिंदिय जात्र परिणवा, बादर पुढ काइय जाव परिणएवा || जइ सुहुम पुढवि काइय जाव परिणए किं पत्त हुम पुढवि काइय जात्र परिणए || अपज्जत सुहुम पुढवि काइय जाव परिणए गोयमा ! पज्जत्ता सुहुम पुढवि काइय जाव परिणएवा, अपजत्ता सुहुम पुढवि काइय जाव परिणए एवं बादरावि एवं जाव बणस्सइ काइयाणं, चउक्कभेदो, इंदिय इंदिय चउरिंदियाणं दुयओ भेदो, पज्जत्तगा अपज्जत्तगाय जइ पंचिंदिय ओरालिय कायप्पओग परिणए किं तिरिक्ख जोणिय पंचिदिय ओरालिय सरीर कायिक यावत् वनस्पति कायिक एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग परिणत है ? अहो गौतम ! पृथ्वीका - { {यिक यात्रत् वनस्पतिकायिक उदारिक शरीर प्रयोग परिणत है. यदि पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय उदारिक शरीर प्रयोग परिणत है तो क्या सूक्ष्म अथवा बादर प्रयोग परिणत है ? अहो गौतम ! दोनों परिणत है. यदि सूक्ष्म परिणत है तो क्या पर्याप्त या अपर्याप्त प्रयोग परिणत है ? पर्याप्त प्रयोग परिणत व अपर्याप्त प्रयोग परिणत है. ऐसे ही बादर पृथ्वीकायां का जानना. ऐसे ही वन
सूक्ष्म व बादर
अहो गौतम !
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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