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________________ सत्र १.१ अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 27 मोसमणप्पओग परिणए किं आरंभ मोसमणप्पओग परिणएवा, एवं जहा सच्चेणं तहा मोसेणंवि, एवं सच्चामोसेणंवि एवं असच्चामोसमणप्पओगेवि ॥ जइ वइप्पओग परिणए किं सच्चवइप्पओग परिणए, मोसवइप्पओग परिणए एवं जहामणप्पओग परिणए तहा वइप्पओग परिणएवि, जाव असमारंभ वइप्पओग परिणएवा ॥ जइ कायप्पओग परिणए किं ओरालिय सरीर कायप्पओग परिणए, ओरालिय मीसा सरीर कायप्पओग परिणए, वेउब्विय सरीर कायप्पओग परिणए, वेउब्वियमासा सरीर कायप्पओग परिणए, आहारग सरीर कायप्पओग परिणए, आहारगमीसा प्रयोग परिणत, समारंभ सत्य मन प्रयोग परिणत व असमारंभ सत्य मन प्रयोग परिणत है ? अहो गौतम ! आरंभ अनारंभ, सारंभ, असारंभ, समारंभ, असमारंभ सत्य मन प्रयोग परिणत है. जैसे सत्य मन प्रयोग परिणत का कहा वैसे ही मृषा मन प्रयोग परिणत, मीश्र मन प्रयोग परिणत व व्यवहार मन प्रयोग परि णत का जानना. जैसे मन प्रयोग परिणत का कहा वैसे ही वचन प्रयोग परिणत का असमारंभ वचन प्रयोग परिणत तक का जानना. यदि काय प्रयोगपने परिणमे तो क्या उदारिक शरीर काय प्रयोगपने परिणमे, उदारिक मीश्र शरीर काय प्रयोगपने परिणमे, वैक्रेय शरीर काय प्रयोगपने परिणमे, वैक्रेय मीश्र * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावाथ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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