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सृन /
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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एगिदिय पओग परिणयाय । आउ काइय एगिदिय पओग परिणयावि एवं चैव ॥ एवं दुयओ भेओ जाव वणस्सइ काइय एगिदिय पओग परिणया ॥ बेइंदिय पओग परिणयाणं पुच्छा, गोयमा ! अणेगविहा पण्णत्ता, एवं तेइंदिय पओग परिणया, चरिंदिय पओग परिणयावि, ॥ पंचिंदिय पओग परिणयाणं भंते! पुच्छा, गोयमा ! चउविहा पण्णत्ता, तंजहा-नेरइय पंचिंदिय पओग परिणया, तिरिक्ख पंचिंदिय पओग परिणया, एवं मणुस्सदेव पंचिंदिय पओग परिणयाय ॥ नेरइय पंचिंदिय पओग परिणयाणं पुच्छा? गोयमा! सत्तविहा पण्णत्तातंजहा-रयणप्पभा पुढवि नेरइय पंचिंदिय पओग परिणयाय जाव अहे सत्तम पुढवि नेरइय पंचिंदिय पओग परिणयाय ॥
तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय पओग परिणयाणं पुच्छा ? गोयमा ! तिविहा प० तं. प्रयोग परिणत. ऐसे ही अप्काय, तेउकाय, वायुकाय व वनस्पतिकाय के दो २ भेद जानना. अहो, भगवन् ! द्वीन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल कितने प्रकार के ? अहो गौतम ! अनेक प्रकार के ऐसे ही तीइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय का जानना. पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल के चार भेद नारकी पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत, तिर्यंच पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत, मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत व देव पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत. उन में से नारकी पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत के सात भेद रत्नमभापृथ्वी के नारकी पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत .
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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