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शब्दार्थ
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अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
मिथ्याष्टिको पंपांच सासममिथ्यादृष्टि की पंपांच॥१०॥ म:मनुष्य ज जैसे णे नारकीणा नानाप्रकार म०महाशरीरी आ.कदाचित् आ-आहार करते हैं जे. जो अ० अल्प शरीरी ते वे अथोडे पो० पद्गल आ० आहार करते हैं अ० वारंवार आ० आहार करते हैं से० शेप ज. जैसे • नारकी जा. यावत्
याणं चत्तारि,मिच्छट्ठिीणं पंच सम्ममिच्छट्ठिीणं पंच।। १२॥मणुस्सा जहाणेरइया,णाणत्तं जे महासरीरा ते आहच्च आहारति ४ बजे अप्पसरीरा ते अप्पतराए पोग्गले आहारति
४ । आभक्खणं आहारेति. सेमं जहा णेरइयाणं जाव वेदणा. मणुस्साणं भंते सव्वे १२॥ मनुष्य का अधिकार नारंकी जैसे कहना. विशेष इतना कि-क्या सब मनुष्य मारखे आहार करनेवाले हैं ? अहो गौतम ! मनुष्य के दो भेदः वडे शरीवाले व छोटे शरीग्वाले. उस में जो बडे शरीर वाले हैं वे बहूत पुगलों का आहार करते हैं, वहन पदर परिणमते हैं, मे ही श्वासोश्वास लेते हैं. यहां नरकमें वारंवार आहार करने का कहा है, परंतु देवकुरु उत्तरकुरु के युगलिये तीन दिन में आहार लेते हैं. छोटे शरीर वाले अल्प पुगलों का आहार करते हैं. उस के दो भेद संमृच्छिम व बालक वे दोनों वारंवार आहार करते हैं. के बाकी का मब अधिकार नारकी जैने कहना. अहो भगवन ! सब मनुष्य सरािखि क्रिया वाले हैं ! अहो न
गौतम : यह अर्थ योग्य नहीं हैं. अहो भगवन : किम कारण मे यह अर्थ योग्य नहीं है ? अहो गौतम
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ